रक्षाबंधन: भाई-बहन के प्रेम का पवित्र धागा और उसकी पौराणिक कथाएँ
भारत में मनाए जाने वाले अनेकानेक त्योहारों में रक्षाबंधन का एक विशेष स्थान है. यह पर्व सिर्फ़ एक धागे का बंधन नहीं, बल्कि भाई और बहन के बीच के अटूट प्रेम, विश्वास और एक-दूसरे की रक्षा के वचन का प्रतीक है. श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला यह त्योहार, सदियों से चली आ रही कई पौराणिक और ऐतिहासिक कहानियों से जुड़ा है, जो इसकी गरिमा और महत्व को और बढ़ा देती हैं. आइए, जानते हैं रक्षाबंधन से जुड़ी कुछ प्रमुख कहानियों को:
1. इंद्र देव और इंद्राणी की कथा: रक्षासूत्र का आरंभ
यह कथा सबसे प्राचीन और रक्षासूत्र के उद्गम से संबंधित मानी जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार असुरों के राजा वृत्रासुर ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया था. इस युद्ध में देवराज इंद्र की पराजय होने लगी, जिससे वे बहुत चिंतित हुए. अपने पति की यह दशा देखकर इंद्राणी (इंद्र की पत्नी) ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी. भगवान विष्णु ने इंद्राणी को एक पवित्र धागा दिया और कहा कि इसे इंद्र की कलाई पर बांध दें. श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्राणी ने विधि-विधान से उस रक्षासूत्र को इंद्र की कलाई पर बांधा, जिससे इंद्र को शक्ति मिली और उन्होंने वृत्रासुर को पराजित कर दिया. मान्यता है कि यहीं से रक्षासूत्र बांधने की परंपरा शुरू हुई, जो बाद में भाई-बहन के रिश्ते का प्रतीक बन गई.
2. राजा बलि और देवी लक्ष्मी की कथा: वचनबद्धता का धागा
एक अन्य प्रसिद्ध कथा भगवान विष्णु और उनके भक्त राजा बलि से जुड़ी है. जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से तीनों लोकों को मांग लिया था, तो राजा बलि ने अपनी भक्ति और दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान से यह वरदान मांग लिया कि वे हर समय उनके साथ पाताल लोक में रहें. भगवान विष्णु को अपनी पत्नी देवी लक्ष्मी और निवास स्थान बैकुंठ धाम को छोड़कर पाताल लोक जाना पड़ा.
भगवान विष्णु को वापस लाने के लिए देवी लक्ष्मी ने एक युक्ति सोची. वे श्रावण पूर्णिमा के दिन साधारण स्त्री का वेष धारण कर राजा बलि के पास गईं और उन्हें राखी बांधी. बदले में जब राजा बलि ने उन्हें कुछ मांगने को कहा, तो देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को उनसे मुक्त करने का अनुरोध किया. राजा बलि अपने वचन के पक्के थे और उन्होंने भगवान विष्णु को सहर्ष बैकुंठ धाम वापस जाने दिया. इस प्रकार, यह कथा वचनबद्धता और बहन के सम्मान की प्रतीक बन गई.
3. भगवान कृष्ण और द्रौपदी की कथा: अटूट रक्षा का वचन
महाभारत काल से जुड़ी यह कथा भाई-बहन के बीच रक्षा के वचन को सबसे सशक्त रूप से दर्शाती है. शिशुपाल के वध के समय भगवान कृष्ण की उंगली कट गई थी और उसमें से रक्त बहने लगा था. यह देखकर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया. कृष्ण ने द्रौपदी के इस निःस्वार्थ प्रेम और स्नेह से प्रसन्न होकर उन्हें हर संकट में रक्षा का वचन दिया. जब कुरुसभा में द्रौपदी का चीरहरण हो रहा था, तब भगवान कृष्ण ने अपने इसी वचन का पालन करते हुए उनकी लाज बचाई थी. यह कथा दर्शाती है कि भाई अपनी बहन की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है.
निष्कर्ष:
रक्षाबंधन का त्योहार इन पौराणिक और ऐतिहासिक कथाओं से प्रेरणा लेता है, जो हमें भाई-बहन के रिश्ते की पवित्रता, निस्वार्थ प्रेम और एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य की याद दिलाती हैं. यह सिर्फ़ एक धागा नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ऐसा मजबूत बंधन है, जो हर साल हमें इस रिश्ते की गहराई और महत्व को समझने का अवसर देता है.
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